मुंबई के नेवी चिल्ड्रेन स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ रही 16 वर्षीय काम्या कार्तिकेयन ने अपने पिता एस. कार्तिकेयन के साथ सोमवार (20 मई) को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके वहां भारत का झंडा लहराया. आपको बता दे कि एस. कार्तिकेयन भारतीय नौसेना के कमांडर है.
काम्या ने सोमवार यानी 20 मई को दोपहर 12:35 बजे एवरेस्ट की चोटी पर भारतीय तिरंगा लहरा कर देश का नाम रोशन किया. जबकि एस कार्तिकेयन दोपहर 2:15 बजे एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचे. दोनों ने 6 अप्रैल को काठमांडू से अपने एवरेस्ट अभियान की शुरुआत की थी.
पिता और बेटी की इस फतह ने ना केवल भारत के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल कायम की है. काम्या ने सोमवार यानी 20 मई को दोपहर 12:35 बजे एवरेस्ट की चोटी पर भारतीय तिरंगा लहरा कर देश का नाम रोशन किया. एस कार्तिकेयन दोपहर 2:15 बजे एवरेस्ट के शिखर पर पहुंचे. दोनों ने 6 अप्रैल को काठमांडू से अपने एवरेस्ट अभियान की शुरुआत की थी.
दोनों पिता-बेटी बुधवार (22 मई) को शाम को करीब 4 बजे बेस कैंप-4 में लौट आए. काम्या को एवरेस्ट तक पहुंचने में टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने आर्थिक तौर पर सहायता प्रदान की.
आपको बता दें कि साल 2017 में केवल 9 साल की उम्र में 20 हजार 187 फीट ऊंचे माउंट स्टोक कांगरी पर फतह करके काम्या और उनके पिता कमांडर एस कार्तिकेयय ने सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी थी. आपको बता दें कि केवल 3 साल की उम्र में काम्या ने अपने पिता से प्रेरणा लेकर पश्चिमी घाटों पर ट्रैकिंग शुरू कर दी थी.
अपने पिता और कमांडर एस कार्तिकेयय से प्रेरणा लेकर काम्या ने केवल 7 साल की उम्र में ही हिमालय यात्रा और वहां ट्रेकिंग करनी शुरू कर दी थी. साल 2015 में काम्या ने चंद्रशिला चोटी (12,000 फीट) पर ट्रेकिंग शुरू कर दी थी वहीं साल 2016 में उन्होंने हर-की-दून , रूपकुंड झील जैसी ट्रैकिंग को पूरा किया.
साल 2017 में ही काम्या ने नेपाल में 17,600 फीट की ऊंचे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने के लिए बेस कैंप में ट्रेकिंग शुरू कर दी थी. काम्या को साल 2019 में प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो 18 साल के कम उम्र के नागरिकों के लिए सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार माना जाता है.
इस खबर ने एक बात तो साबित कर दी कि अगर आपके हौसलें बुलंद हो तो मंजिल तक पहुँचाना और भी आसान हो जाता हैI और कामयाबी कभी उम्र के बेसिस पर नहीं मिलती, जब जिस उम्र में जिसने चाहा उसे उतना मिल जाता हैI बस यही मोटिवेशन बच्चों में होना चाहिए ताकि वो कभी इस बात को ना सोचेंI आज हम देख रहे हैं कि कम उम्र में बच्चे वो मुकाम हासिल कर रहे हैं जिसके बारे में सोच पाना भी पहले मुश्किल था फिर वो चाहे शतरंज के खेल में महारत हासिल करना हो या फिर एवरेस्ट पर चढ़ना|
इन कहानियों और किस्सों का हर बच्चे तक पहुँचाना बहुत जरूरी है इसलिए माता पिता होने के नाते आप अपने बच्चों को कम उम्र से ही ऐसी किताबें पढ़ा सकते हैं जिनसे न सिर्फ उन्हें सीख मिले बल्कि कुछ करने का जज्बा भी आएI इसके लिए आप चाहें तो Ashwatha Tree Publication की किताबें बच्चों को दे सकते हैI इन किताबों में ना सिर्फ पौराणिक कहानियों बल्कि खेल जगत, पर्यावरण और कला से जुड़ी मोटिवेशनल कहानियाँ भी शामिल हैI बस जरूरी है हर बाधाओं को दूर करके उन्हें सशक्त करने की|
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