Social Media की Fake World से बच्चों में बढ़ रहे Depression के मामले, योगा और Moral Stories वाली Books करेंगी Help

सोशल मीडिया और सबसे आगे रहने की दौड़ स्कूली बच्चों को मानसिक रोगी बना रही है। पिछले दिनों मनोचिकित्सकों के पास ऐसे दर्जनों मामले पहुंचे हैं जिनमें खुद को स्कूल में क्लास मॉनिटर नहीं बनाए जाने, सोशल मीडिया पर पसंद नहीं किए जाने के अलावा उनकी तारीफ सार्वजनिक रूप से नहीं किए जाने की वजह से स्कूली बच्चे तनाव और अवसाद के शिकार हो गए.

हालात इतने बिगड़ गए कि कुछ मामलों में तो बच्चों के मन में आत्महत्या तक करने का विचार घर कर गया। मनोचिकित्सकों का कहना है कि स्कूली बच्चों में तनाव और अवसाद मिलना खतरनाक संकेत है। इसके लिए जरूरी है कि परिजनों के अलावा शिक्षकों और बच्चों को जागरूक करने के लिए काम हो। मनोचिकित्सकों का कहना है कि बड़ी संख्या में बच्चे काउंसलिंग के लिए हमारे पास आते हैं। उनको समझाया जाता है कि अपनी प्रतिभा को पहचानें और उसमें सबसे बेहतर बनें। दूसरों से खुद की तुलना कतई न करें।

ऐसा हो तो हो जाएं अलर्ट

बच्चे का व्यवहार बदला हुए दिखे

बच्चा सामान्य बातों पर भी गुस्सा दिखाए

दूसरे सहपाठी या दोस्तों के बारे में बात न करे

खुद को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करे

नोएडा के नामी स्कूल में आठवीं कक्षा की छात्रा को क्लास मॉनिटर नहीं बनाया गया। उसकी जगह दूसरी छात्रा को शिक्षक ने चुन लिया। इससे नाखुश छात्रा ने खुद को ही दूसरों से कमतर मान लिया। इसकी वजह से वह गुमशुम रहने लगी। हमेशा शांत रहने वाली छात्रा अचानक से गुस्सैल व्यवहार करने लगी। कुछ समय बाद जब छात्रा का व्यवहार परिजनों को असामान्य लगा तो उसे मनोचिकित्सक के पास ले गए। काउंसलिंग के बाद उसका व्यवहार बेहतर हुआ। खुद को दूसरों से बेहतर और मशहूर दिखाने के चक्कर में स्कूली बच्चे अवसाद में जा रहे हैं।

सोशल मीडिया पर कम लाइक्स आने का गम

नोएडा के सेक्टर-27 का एक छात्र अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर रील और वीडियो पोस्ट करता था। उसके पोस्ट पर दोस्तों की तुलना में काफी कम लाइक्स आ रहे थे। ऐसे में वह तनाव में रहने लगा। कई प्रयासों के बाद भी लाइक्स की संख्या नहीं बढ़ी। इस बीच उसका तनाव इतना बढ़ गया कि आत्महत्या तक का प्रयास उसने किया। तबियत काफी बिगड़ने के बाद अब उसकी काउंसलिंग और जरूरी ट्रीटमेंट चल रहा है।दूसरी छात्रा को हेड गर्ल बनाने से हुई परेशानी

किताबों की ले सकते हैं मदद 

सोशल मीडिया पर दिख रहे एक छलावे की फेक लाइफ में बच्चें खुद हिन भावना का शिकार हो रहे हैं. और इसी छलावे की दुनिया में जी रहा उनका मन वर्चुअल वर्ल्ड को नही समझ पाता है. तो इसस उबरने के लिए बेहतर ये है कि छोटी उम्र में ही उनमें किताब पढ़ने की आदत डालें, इसी बात का ख्याल रखते हुए Ashwatha Tree Publication ने ऐसी किताबें Publish की है जो बच्चों के मेंटल हेल्थ को हेल्दी बनाने में हेल्प करती हैं . इन किताबों में भी एक कैटगरी है जो बच्चों के मोरल वैल्यूज सिखाती हैं, इन किताबों में कहानियों के अलावा योग एंड मेडिटेशन के महत्व को समझाती हैं. लाइफ में योग एंड मेडिटेशन के साथ-साथ अच्छी कहानियों को पढ़ना बच्चों को सोशल मीडिया के भ्रमजाल से मुक्त करता है.

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बातचीत से बच्चों को बना सकते हैं स्वस्थ

एक्सपर्ट्स की माने तो स्कूली बच्चों में तनाव और अवसाद के मामलों में बातचीत जरूरी है। अधिकांश मामलों में बच्चे के अलावा शिक्षक और परिजनों की भी काउंसलिंग करनी होती है। कोई भी अपने बच्चे को कमतर नहीं देखना चाहता। कई परिजनों को लगता है कि वे मोटी फीस खर्च कर रहे हैं। ऐसे में उनके बच्चे को प्राथमिकता देते हुए स्कूल बेहतर बनाए। इससे हालात और बिगड़ जाएंगे। परिजनों को भी अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि उन्हें बेहतर करने के लिए कठिन प्रयास भी करने जरूरी हैं। हर कोई विजेता नहीं हो सकता। यह भी समझना होगा।

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