किशोरावस्था बड़ी नाजुक होती है, क्योंकि यही समय होता है जब अपने बच्चों का भविष्य बनाने की दिशा में हम कुछ कर सकते हैं। और यही वो दौर भी होता है जब बच्चे मिसगाइड होकर रास्ता भटक जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि अपने बच्चे के उम्र के इस मोड़ पर समझदारी से हम काम लें, क्योंकि यहां से आपके बच्चे के बेहतर भविष्य के अनगिनत रास्ते निकलते हैं। ये उम्र का ऐसा दौर है, जिसमें ऊर्जा और क्षमता भी भरपूर होती है। तो जरूरत है उस ऊर्जा और क्षमता को सही दिशा में लगाने की ताकि इस उम्र का भटकाव कहीं भविष्य को अंधकार में न डाल दे।
क्या करें पैरेंट्स
तो सवाल उठता है कि पैरेंट्स करें क्या। क्योंकि देखा जाए तो ये करियर बनाने का समय भी होता है। इसलिए भटकाव को रोकने के लिए और करियर पर फोकस करने के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होगा। कुछ बातों का ख्याल रखकर किशोर खुद को भटकने से बचा सकते हैं और अपना भविष्य भी सुरक्षित कर सकते हैं। पैरेंट्स को चाहिए कि अपने बच्चे की हर एक्टविटी पर ध्यान रखें और कुछ दिनों तक ठीक से वॉच करें लेकिन साथ ही ये भी ध्यान रखना जरूरी है कि आप बच्चे के मामले में ज्यादा इंटरफेयर न करें, अन्यथा बच्चा जिद्दी होने लगेगा। बल्कि जरूरत है बस अलर्ट रहने की ताकि आप उसकी एक्टविटी को एक तरह से स्टडी करें और फिर कोई दिक्कत आती है तो उसका सॉल्यूशन निकाल सकें।
बाल मन को समझना जरूरी
अब सवाल उठता है कि अगर आपका बच्चा दिनभर किताब लेकर बैठा रहता है और रिजल्ट काफी खराब आता है तो करें क्या, क्योंकि ऐसी स्थिति में आप खुद को समझा नहीं पाते कि आपके बच्चे का रिजल्ट खराब क्यों आया। आपके सामने तो आपका बच्चा हमेशा पढ़ता रहता था तो फेल कैसे हो गया। इस तरह की कई बातें आपको परेशान करने लगती है और यहीं आप गलत होते हैं क्योंकि जब आप बच्चे को पढ़ते देख रहे थे या समझ रहे थे कि वो पढ़ रहा है तो उस समय वो पढ़ नहीं रहा था बल्कि आपके डर से वह किताब खोल कर बस बैठा था, उसका ध्यान कहीं और था और इसी कारण वो एग्जाम में एक्सप्रेस नहीं कर पाया। आपको पता है इसका क्या कारण है। आपने बच्चे पर अनावश्यक प्रेशर बना रखा था। आप बच्चों के साथ कभी बैठे ही नहीं। उसके बाल मन को कभी समझ ही नहीं सके। जरूरत थी उससे बातें करने की, उसका पढ़ाई में मन क्यों नहीं लगा इसे भांपने की। लेकिन अभी भी देर नहीं हुई है। अगर बच्चा थोड़ा भटक गया है तो जरूरत है उसे कैसे रास्ते पर लाया जाए, इन प्वॉइंट्स पर विचार करने की। हम आपको कुछ टिप्स दे रहे हैं, जिससे आपका बच्चा फिर से पढ़ने में मन लगाने लगेगा।
गार्जियन नहीं, फ्रेंड्स क्रिएशन पर अश्वत्था ट्री का फोकस
सबसे पहले ये जरूरी है कि बच्चे में बैठने की हैबिट डालें। इसके लिए जरूरी है कि मैथ्स या फिजिक्स की बुक्स के बदले उसे अश्वत्था ट्री जैसे पब्लिकेशंस की इंट्रेस्टिंग बुक्स पढ़ने को दें। उसे इस पब्लिकेशन के किस्से-कहानियों की किताबों से जोड़ें। धीरे-धीरे आप देखने लगेंगे कि उसके अंदर बैठने की हैबिट डेवलप हो रही है। पता है क्यों, क्योंकि उसके पसंद के कैरेक्टर उसकी स्टोरीज बुक्स में मिल रही हैं, और वो उन कैरेक्टर से खुद को कनेक्ट कर पा रहा है। ये बेहद शानदार उपाय है जिसका असर आपको सप्ताह भर में ही देखने को मिलेगा। आप देखेंगे कि बच्चे को खाने-पीने का भी याद नहीं रहेगा और वो दिनभर उन कहानियों से संबंधित क्वेश्चन आपसे करता रहेगा। आप भी अपने बच्चे से पहले की तुलना में काफी जुड़ाव फील करेंगे। क्योंकि बच्चा अब पहले की तरह चिड़चिड़ा नहीं रहता, वह ज्यादा खुश है, उसके अंदर का डर भाग चुका है और आपको वो अपने बेस्ट फ्रेंड समझने लगा है और ये सब उस बुक्स के कारण हुआ है, जिसमें लेशंस ही इसी तरह के हैं, जिससे बच्चे में नैतिकता, सच्चाई, भावनात्मक गुणों का विकास होगा।
अश्वत्था ट्री की बुक्स ही क्यों?
अश्वत्था ट्री के बुक्स हमारे समाज, हमारी संस्कृति, हमारी सभ्यता, हमारे मनीषियों की जिंदगी, उनके द्वारा किये गए सुधार कार्यों और उनकी जिंदगी से मिलनेवाली सीख पर आधारित हैं। इस पब्लिकेशन के बुक्स की खासियत है कि इसमें पात्रों को काफी रिसर्च के बाद गढ़ा गया है, जिससे उन पात्रों के माध्यम से ऐसे संवाद क्रिएट करने में मदद मिलती है, जिसे पढ़ने के बाद बच्चा एकबार उसके बारे में जरूर सोचता है, क्योंकि उस बुक्स को पढ़ने से पहले वो उससे डिफरेंट सोच रखता था, या फिर उस सोच से गुजर चुका था, और जैसे ही वह लाइन उस बुक्स से वो पढ़ता है, उसके दिल और दिमाग में एक बार प्रश्न उठ खड़ा होता है कि मेरे साथ भी ऐसा क्यों होता है। बच्चा दौड़कर किचन की तरफ भागता है और अपनी मां से सवाल करता है कि मां मैंने इस बुक्स में ऐसा पढ़ा, ऐसा क्यों होता है। मां द्वारा बच्चे को दिया गया जवाब बच्चे को एक बड़ी सीख, एक बेहतरीन रास्ते की तरफ ले जाता है।
बुक्स के कलरफुल पेज में मस्ती की होली का एहसास
दिल्ली के प्रगति मैदान में हाल ही में संपन्न विश्व पुस्तक मेला में काफी विजिटर्स ने अश्वत्था ट्री पब्लिकेशन के स्टॉल पर विजिट किया। कुछ विजिटर्स को स्टोरी ऑफ च्यवनप्राश बुक काफी पसंद आई। अब ये हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि जो च्यवनप्राश हम अपने बच्चों को दिन-रात खिला रहे हैं या खुद खा रहे हैं, उस च्यवनप्राश की कहानी भी हो सकती है। लेकिन यही अश्वत्था ट्री की खासियत है, रिसर्च और अपने शानदार विजन से वो स्टोरीज के सबजेक्ट में भी इंट्रेस्ट पैदा कर देता है और च्यवनप्राश की स्टोरी को हम अश्वत्था ट्री जैसे पब्लिकेशन के माध्यम से जान पाते हैं। विजिटर्स ने बच्चों को सीखने व लर्निंग के लिए बुक्स के इलस्ट्रेशन और पिक्चर को काफी उपयोगी बताया। और ये अश्वत्था ट्री के बुक्स की खासियत भी है कि वह कहानी को चित्रों के माध्यम से गढ़ता है और उन चित्रों में भी ऐसे कलर्स को भरा गया है, जो बच्चों को मनभावन लगते हैं, जिससे बच्चे आसानी से लाल, हरे, पीले रंगों में पढ़ाई-पढ़ाई में ही मस्ती की होली एन्ज्वॉय कर लेते हैं और दिनभर तरोताजा फील करते हैं।
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बच्चों के संस्कार और नैतिकता पर फोकस्ड हैं बुक्स…
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सबसे खास बात ये है कि अश्वत्था ट्री की डायरेक्टर और राइटर तुलिका सिंह ने बच्चों के लिए अपने पुस्तकों के माध्यम से जिस तरह का स्वप्निल संसार बनाया है, वो बच्चों के अंदर बैठने या पढ़ने की ही आदत नहीं विकसित करती, बल्कि लेखिका के पात्रों को गढ़ने और कहानियों को आगे बढ़ाने का अंदाज इतना निराला है कि आपको और पढ़ने का दिल करता है। किताब में नई-नई चीजों को जानने का मौका मिलता है। ऐसे में आपके अंदर जिज्ञासा बढ़ती है और आप अधिक पढ़ते हैं। इसका फायदा निजी और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में होता है।
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