हर संस्कृति की अपनी पौराणिक कथाएं होती हैं, यानि की वो कहानियाँ और किस्से जिनमें शूरवीर में किरदार होते है, देवता, दैत्य और जानवर होते हैं। हालांकि इन कथाओं की अलग अलग जगह और लोगों में अलग अलग मान्यताएं होती हैं, लेकिन हर जगह एक बात जो देखी जाती है वो ये है कि हम सभी में इनके प्रति जबर्दस्त आकर्षण होता है। भारत के इतिहास और संस्कृति में ऐसी कई कथाएँ हैं जो न सिर्फ रोमांचकारी और मनोरंजक हैं बल्कि उनमें बड़ों और बच्चों के लिए कोई न कोई नैतिक शिक्षा भी होती है।
एक ऐसा ही किस्सा है जो भारत के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से भी जुड़ा हुआ है| यह पुरस्कार किसी भी सैनिक के लिये उसके जीवन का ख़्वाब होता है। बीते सालों में जिन्हें भी ये पुरस्कार मिला है उनसे प्रेरित होकर कई नौजवान सेना में शामिल हुए हैं| ऐसा करके उन्होंने देश और बहादुरी की विरासत को आगे बढ़ाया है। यह एक ऐसा सम्मान है जो थल, जल या वायु सेना में दुश्मनों के ख़िलाफ़ बहादुरी, साहस, वीरता या फिर आत्म-बलिदान के लिए सैनिकों को दिया जाता रहा है। दिलचस्प बात ये है कि इसकी बनाने और वीर पुत्रों को इससे सम्मानित करने के पीछे एक बहुत ही रोचक कहानी है जिसे ख़ास तौर से बच्चों के लिए अश्व्था ट्री की की किताब “The Story Of Paramveerchakra” में लिखी गयी है|
कहा जाता है कि वीरता पुरस्कारों की इस परंपरा की शुरूआत अंग्रेज़ों ने की थी। उन्होंने सन 1795 में अपने भारतीय के सैनिकों को सोने के पदक देने शुरु किये थे। इसके बाद सन 1834 में ऑर्डर ऑफ़ मेरिट पुरस्कार की शुरुआत हुई।
लेकिन अंग्रेजो से भी पहले पिछले समय में, भारत में सबसे बहादुर सैनिकों को राजा-महाराजा सोने के बैंड से सम्मानित करते थे। या फिर ऐसा भी होता था की बहादुरी दिखाने के इनाम में किसी की जमीन पर चढ़ा हुआ कर्जा माफ़ कर दिया जाता था तो कभी उसे कपड़ें दिए जाते थे और कुछ के नाम पर मनुमेंट्स भी बनाये जाते थे।
लेकिन आज सरकार बहादुरी के लिए हमारी सेना के जवानों को परमवीर चक्र देती है| पर क्या आपको पता है कांसे का बना परमवीर चक्र गोलाकार है| जिसके बीचों बीच एक उभरे हुए घेरे पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक सत्यमेव जयते मौजूद है, जो चारों तरफ़ से वज्र से घिरा हुआ है| आपको जान कर हैरानी होगी की ये भगवान इंद्र का हथियार माना जाता है। इसके पीछे हिन्दी और अंग्रेज़ी में लिखे ‘परमवीर चक्र’ के नाम के चारों ओर कमल के फूल हैं। यह पदक 1.3 इंच के बैंगनी रंग रिबन के साथ सीधी-घुमावदार पट्टी से लटका हुआ है।
पौराणिक कथाओं में लिखा है कि जब एक राक्षस वृत्रा ने दुनिया के पानी पर कब्ज़ा कर लिया और भयानक सूखा पैदा कर दिया। तब इंद्र ने भगवान विष्णु से सलाह मांगी। विष्णु ने सलाह दी, कि ऋषि दधीचि की हड्डियां लाई जाएं और उनसे एक हथियार बनाया जाए, उसी हथियार से वृत्रा को मारा जा सकता है। जब ऋषि दधीचि को यह बात बताई गई, तो उन्होंने हस्ते हस्ते अपनी हड्डियों का बलिदान कर दिया। फिर इंद्र ने उन्हीं हड्डियों से वज्र बनाया गया। जिस से फिर राक्षस वृत्र को मारने और पृथ्वी को बचाने के लिये वज्र का उपयोग किया गया।
इसलिए जब परमवीर चक्र का निर्माण किया जा रहा था और इसके डिजाईन पर बात चल रही थी तब नेहरू ने नये पदक को डिज़ाइन करने के लिये के पहले भारतीय एडजुटेंट जनरल, मेजर जनरल हीरा लाल अटल (1905-1985) से बात की। इस काम के लिये अटल जी ने विक्रम की पत्नी सावित्रीबाई खानोलकर को ये जिम्मा सौपा गया|
तब ऋषि दधाचि की कहानी से प्रेरणा लेते हुए सावित्री बाई इसके डिज़ायन में वज्र को शामिल किया के रूप में इस्तेमाल किया और इसमें शिवाजी की तलवार ‘भवानी’ को भी जोड़ा गया है। जिसके बाद इसे परमवीर चक्र का नाम दिया गया| सोचिये, जब आप अपने बच्चों को इस कहानी को पढाएंगे या बच्चा अपने दोस्तों के साथ इस किताब को प्देहेगा तो उसमे बचपन से ही त्याग और समर्पण की भावनाओं का विकास होगा| जहाँ एक तरह वो पुरानों से मिले ज्ञान से जुड़ेगा बल्कि नए समय में अपने देश और उनके सैनकों के प्रति और भी ज्यादा जिम्मेदार बनेगा| इसलिए आज ही घर लाए अश्वत्था ट्री की किताबें|
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